नक्षत्रप्रकाश Astrology Blog in Hindi: September 2019

Monday, 30 September 2019

जन्मकुंडली से व्यक्ती कौनसे रोग से पिडीत हो सकता है ये रोग होने के पहले समझता है ?

क्या किसी डॉक्टर को बच्चे का जन्म होते ही, बच्चे को आगे जीवन में कौनसे बिमारीसे झुंझना पडेगा इसका ग्यान हो सकता है ? इसका जबाब नही होगा । मेडीकल की कोई ब्रांच इसका पता लगाने में सक्षम नही है । दुसरा सवाल ये है क्या व्यक्ती को आगे होने बिमारीका पता पहलेसे लगने से बिमारी टाली जा सकते है ? इसका जबाब हा है । अगर व्यक्ती को ये पता चले की मैं आगे जाकर कौनसी शारिरीक या मानसीक बिमारीसे पिडीत होने वाला हू ; तो व्यक्ती उससे बचाव कर सकता है । कौनसी  बिमारी किन कारणों से होती है ये जानकर अपनी दिनचर्या, खान-पान में बदलाव लाकर, बुरी आदतो को छोडकर, और कुछ प्रिव्हेंटीव्ह उपाय करता है तो बिमारीसे बचाव हो सकता है । अगर बिमारी होनी ही है तो उससे होने वाला नुकसान, जैसे इमर्जन्सी में हॉस्पीटल में भर्ती  होनेसे होने वाला नुकसान कम किया जा सकता है । बिमारी नियंत्रण में रखकर हररोज काम भी कर सकता है । बिमारी में उपचार का  खर्चा कम कर सकता है ।

जन्मकुंडली ऐसा साधन है जिससे मानवी जीवन को सही मार्गदर्शन मिलता है । मानवी जीवन में कई सारी समस्याए होती है । इस आर्टीकल और इससे जुडे आर्टीकल में मैं Medical Astrology की जादा चर्चा करुंगा । व्यक्ती का जन्म होते ही उसकी जन्मकुंडली बनाई जा सकती है । जैसे ही जन्मकुंडली बनती है ग्यानी ज्योतिषी व्यक्ती की आयुमर्यादा, होने वाली संभाव्य बिमारीया तथा उसका काल याने कब कौनसी बिमारी होगी उसके बारें में जान सकता है ।

भारतदेश में हो या दुनियाभर में prevention is better than cure इस विचार का लाभ लेने वाले व्यक्ती कम होते है । अपनी जीवनशैली ( Life Style ) को नियंत्रीत नही कर पाते इसलीए कुछ होने के बाद ही उसका इलाज ढुंढते है । ज्योतिषशास्त्र प्राचीन भारतीय शास्त्र है । इसमें दोनो तरीको सें ( Preventive and Reactive ) मानवी जीवन को मार्गदर्शन करने की क्षमता है । साथ में मानवी जीवन की हर समस्या का समाधान ढुंढकर मार्गदर्शन देने की क्षमता रखता है ।

इस आर्टीकल की शुरवात में हमने ये सवाल पुछा था की व्यक्ती का जन्म होते ही क्या आगे चल कर होने वाली बिमारीयों का पता चल सकता है ? ज्योतिषशास्त्र इसके लिए सक्षम है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दिन में बारह राशी की जन्मलग्न कुंडली ( Rising Sign based Horoscope or Asendent Horoscope ) से व्यक्ती के छटे भाव याने रोग स्थान कें बारें में जाना जा सकता है । छटे भाव का स्वामी की स्थिती तथा छ्टे भाव में बैठे ग्रहो सें होने वाली बिमारीयों का अनुमान किया जा सकता है । लग्न राशी का स्वामी और सुर्यकी स्थिती से रोग प्रतिरोधक शक्ती ( Immunity ) का अनुमान किया जा सकता है ।


अगर ज्योतिषशास्त्र की क्षमता कें बारें मे अधिक जानकारी ना रखने वाले को ये जानकर आश्चर्य होगा की व्यक्ती का जन्म होते ही जन्मकुंडली बनाई जाए तो अभी अभी जन्मे बच्चे की अगर कोई disability याने विकलांगता का पता भी चल सकता है । कई बार ये बाद में पता चलता है की बच्चा mentally challenged है या फ़िर autism के कारण पढने लिखने में कमजोर होगा ।

ये अगर पहले पता चलता है तो उमर पांच तक कई ऐसे उपचार आयुर्वेद में है जिससे mentally challenged या autism का कम उम्र में उपचार करके उसके की लक्षणॊ कम कम किया जा सकता है ।

इसी तरह सामान्य व्यक्ती को कौनसे प्रकार की बिमारीया सामान्य रुप से परेशानी दे सकती है उसका भी अध्ययन करके योग तथा अन्य उपाय करके उससे बचाव करना संभव है ।

इस आर्टीकल में कौनसे लग्न को कौनसी बिमारीया जादा हो सकती है इसकी जानकारी लेंगे । अगर लग्न का स्वामी और सुर्य बलवान हो तो इन बिमारीयो का असर कम होगा । वो बिमारीया chronic नही होगी । अगर लग्न का स्वामी और सुर्य बलवान ना हो तो बिमारीया chronic हो सकती है ।

जन्मकुंडली के लग्न स्थान का अंक
लग्नस्थान के अंक से समझने वाली राशी
इस जन्मलग्न राशी में जन्मे व्यक्ती को सामान्य रुप से होने वाली बिमारीया
मेष
इनके छटे स्थान में कन्या राशी होने से पाचन शक्ती कमजोर होना सामन्य रुप से दिखाई देता है
वृषभ
तुला राशी छटे स्थान में होने सें मुत्रपिंड से जुडी बिमारीया जैसे किडनी स्टोन, मुत्रमार्ग संसर्ग ( urinary infection ) य़ा फ़िर मुत्र की बिमारीया सामान्य रुप से सताती है
मिथुन
वृश्चिक राशी छटे भाव में होने से बवासीर और व्यक्ती का आचरण नैतीक ना हो तो गुप्तरोग जैसी बिमारीया या जननांगो के संसर्ग से होने वाली बिमारीया सामन्यरुप से सताती है

  
जन्मकुंडली के लग्न स्थान का अंक
लग्नस्थान के अंक से समझने वाली राशी
इस जन्मलग्न राशी में जन्मे व्यक्ती को सामान्य रुप से होने वाली बिमारीया
कर्क
धनु राशी छटे स्थान में होने से इसका संबंध spinal cord याने मज्जारज्जू से संबंधी बिमरीया जैसे स्पॉंडिलीसीस, लिव्हर से जुडी बिमारीया का प्रभाव सामान्य रुप से होता है ।
सिंह
मकर राशी छटे स्थान में होने से हड्डीयो संबंधीत बिमारी या फ़िर घुटने की बिमारीया सामान्य रुप से जादा सताती है ।
कन्या
कुंभ राशी छटे स्थान में होने से व्हिटामीन बी की कमजोरी से  की बिमारीयो का प्रभाव जादा होता है । इसमें पाचन संस्था से लेकर जनरल हेल्थ खराब होना, शरीर कमजोर बनना ऐसी बिमारीया सामान्य रुप से सताती है ।

जन्मकुंडली के लग्न स्थान का अंक
लग्नस्थान के अंक से समझने वाली राशी
इस जन्मलग्न राशी में जन्मे व्यक्ती को सामान्य रुप से होने वाली बिमारीया
तुला
मीन राशी छ्टे स्थान में होने से व्यक्ती को शारिरीक कम मानसीक बिमारीया जादा सताती है ।
वृश्चिक
मेष राशी छटे स्थान में होने से सरदर्द, मायग्रेन, सायनस जैसी बिमारीया जादा सताती है ।
धनु
वृषभ राशी छटे स्थान में होने से कफ़, खासी टॉन्सील्स या थाईराईड की बिमारी हो सकती है ।


जन्मकुंडली के लग्न स्थान का अंक
लग्नस्थान के अंक से समझने वाली राशी
इस जन्मलग्न राशी में जन्मे व्यक्ती को सामान्य रुप से होने वाली बिमारीया
१०
मकर
मिथुन राशी छटे स्थान में होने से सर्दी, कफ़ जादा होने अस्थमा या ब्रोकांयटीस जैसी बिमारीया हो सकती है ।
११
कुंभ
कर्क राशी छ्टे स्थान में होने से सामान्य रुप से खराब पानी पिने से जल्दी पेट खराब होने की बिमारी हो सकती है ।
१२
मीन
सिंह राशी छटे स्थान में होने से ह्रदय विकार से आवश्यक  होता है ।

उपर विवेचन से जन्मकुंडली द्वारा शरीर में जो सामान्य रुप से बिमारीया होती है इसके बारें में अनुमान किया जाता है । कुछ बिमारीया शारिरीक होती है । कुछ मानसीक बिमारीया होती है । कर्क, वृश्चिक और मीन राशी में चंद्र होने से व्यक्ती भावनाओंका नियंत्रण कर नही सकता और मानसीक बिमारीयो का शिकार हो जाता है ।

हमने इस आर्टीकल में सामान्य रुप से कौनसे लग्न को किस प्रकार की बिमारीयो का सामना करना पडता है उसके बारें में जाना । डायबेटीस जैसी बिमारी, हार्ट ट्रबल जैसी बिमारी, कॅन्सर जैसी गंभीर बिमारी का जन्मकुंडली से अनुमान ये बिमारी होने के पहले किया जा सकता है । अगर व्यक्ती अपने स्वास्थ्य के बारें में गंभीर है तो इन बिमारिय़ा होने के पहले अपना खान पान चयन करके, योग तथा और कई व्यायाम करकेबिमारिय़ों से अपना बचाव कर सकता है ।


मेरे इसके पहले पब्लीश हुवे आर्टीकल पढे ।

१. आपके जन्मकुंडलीमें व्यवसाय ( Business ) करने के योग है या नोंकरी करने के योग है ?
https://npastrology.xn--11ba8bom9ab3cd9e6hcc.com/2019/09/business.html

२.क्या आपकी जन्मकुंडली में सरकारी नोकरी मिलने के प्रबल योग है ?
https://npastrology.xn--11ba8bom9ab3cd9e6hcc.com/2019/08/blog-post_28.html

३. क्या आपकी जन्मकुंडली में विदेश जाने का योग है ?
https://npastrology.xn--11ba8bom9ab3cd9e6hcc.com/2019/08/blog-post_31.html

४. कौनसा ज्योतिषशास्त्रीय योग एक रात में लोगोंको फ़ेमस बनाता है ?
https://npastrology.xn--11ba8bom9ab3cd9e6hcc.com/2019/08/blog-post.html

५. क्या आपकें जन्मकुंडली में राजयोग है ?

https://npastrology.xn--11ba8bom9ab3cd9e6hcc.com/2019/09/blog-post_7.html

Thursday, 12 September 2019

अशुभयोग और पितृ पक्ष में श्राध्द का महत्व


अशुभयोग और पितृ पक्ष में श्राध्द का महत्व


हमने पिछले आर्टीकल में पढा की जन्मकुंडली में अशुभयोग होने से व्यक्ती की तरक्की को रोकते है । उन पांच अशुभयोग में राहू तथा केतू किसी ग्रह के साथ होने से अशुभयोग बनता है । आगे बढने से पहले उस आर्टीकल किसी ने नही पढा हो तो एक बार पढे ।


जन्मकुंडली में राहू या केतू  अगर अकेले है तो सामान्यत: दोषकारक नही होते । अगर किसी ग्रह के साथ हो तो पिछले जन्म का दोष दिखाते है । उन ग्रह के कारकत्वो को इस तरह बिगाडते है की व्यक्ती सोचने के किए मजबूर हो जाता है । ये कर्म का सिध्दांत है । अगर व्यक्ती ने पिछले जन्म में किसी की हत्या की हो या प्रताडीत किया हो, कर्जा लेकर चुकाया नही, अहंकार या इर्षा के कारण बैरी बनकर विश्वास को तोडा हो तो इस जन्म में या कई जन्मोतक उसका अशुभ फ़ल मिलता है । ये अशुभफ़ल जन्मकुंडली में अशुभग्रह के रुप में राहू या केतू दर्शाते है । राहू  या केतू अगर अकेले हो तो इस जन्म का उद्देश्य दर्शाते है । लेकीन किसी ग्रह के अंशात्मक योग में होने से ग्रह अपने शुभफ़ल नही दे पाते ।


कर्मका सिध्दांत को जाने बिना ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन, या ये फ़ल व्यक्ती को क्यु मिल रहा है ये समझना एक अधुरा प्रयास है । हरीभाई ठक्करजी एक पुस्तक वेद और उपनिषदो का हवाला देते लिखा है । शायद ही कोई ऐसा पुस्तक हो जो लगभग भारत की सर्व भाषा में अनुवादीत हो । हिंदी में कर्मका सिध्दांत या इंग्रजी में थेअरी ऑफ़ कर्मा नाम से ये पुस्तक सिर्फ़ प्रसिध्द नही ये मल्टी मिलीयन कॉपीज वितरीत हुवा है । अगर किसी ने नही पढी हो तो अवश्य पढे ।


ज्योतिषशास्त्र में ग्रह केवल कर्म के फ़ल दर्शक है । हमारे कर्मोंका फ़ल हमे कितनी मात्रा में और कब मिलेगा ये जन्मकुंडली बताती है । हमारे जन्मकुंडली के ग्रह कोई शुभ फ़ल या अशुभफ़ल निर्माण नही करते । ग्रह तो हमने किये हुवे फ़ल ग्रहण करके हमारे पास पहुचाते है । इसलिए राहू और केतू को प्रत्यक्ष में अस्तित्व ना होने के बावजूद ग्रह माना गया है । कर्मका सिध्दांत समझने के लिए ज्योतिषशास्त्र उपयोगी है तथा ज्योतिषशास्त्र समझने के लिए कर्म का सिध्दांत आवश्यक है । दोनो सिध्दांत एक दुसरे को समझने के लिए पुरक है ।

राहू किसी ग्रह के अंशात्मक योग में होने से अशुभफ़ल अधिक मात्रा में व्यक्ती को मिलेगा ये निश्चित होता है । केतू के साथ कोई ग्रह होने से इस जन्म में  अशुभफ़ल कुछ और भुगतना बाकी है इसका अनुमान लगाया जा सकता है ।

जन्मकुंडली में अगर राहू के साथ सुर्य अंशात्मक योग में हो तो व्यक्ती सन्मान और नोकरी तथा राजकीय उंचा पद आसानी से नही पाता । पिता का सपोर्ट नही मिलता ।  जन्मकुंडली में अगर राहू के साथ गुरु अंशात्मक योग में हो व्यक्ती ग्यान पाकर उसका उचीत उपयोग नही कर पाता । संतती सुख से वंचीत होता है । जन्मकुंडली में शुक्र के साथ राहू अंशात्मक योग में होने से व्यक्ती को वैवाहीक सौख्य में बाधा का सामना करना पडता है । बुध के साथ होने से बुध्दी समयपर काम नही करती । त्वचा रोग जिंदगी भर सताते है । मंगल के साथ होने से व्यक्ती अकारण गुस्सा करता है । प्रॉपर्टी में गडबडी होती है । भाई का प्यार नही मिलता । चंद्र के साथ होने से मा का सुख नही मिलता । मानसीक रोगों का सामना करना पडता है । शनि के साथ होने से कर्म का फ़ल आसानी से नही मिलता उसमें रुकावटे आती है ।

ये सभी फ़ल अगर जन्मकुंडली में राहू या केतू के साथ कोई ग्रह अंशात्मक योग में द्वितीय, व्यय तथा अष्टम भाव में हो तो अधिक मात्रा में मिलते है । इसलिए उसको पितृदोष कहा जाता है । शनि का राहू के साथ अंशात्मक योग होना किसी भी स्थान में पितृदोष है ।

जिन्हॊने ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन नही किया है, उनके लिए ये चित्र है, जिसमें द्वितीय, व्यय अर्थात बारह स्थान और अष्टमस्थान दिखाया गया है ।


सिर्फ़ दुसरे, आठवे और बारहवे स्थान में ये ग्रह होने से पितृदोष की पुष्टी नही होती ।  जिस व्यक्ती के शरीरपर जन्मचिन्ह हो,  जैसे बडासा मस्सा, या त्वचा पर अलग रंग का निशान, त्वचा पर घाव जैसे निशान । अगर ऐसा कोई जन्मचिन्ह है तो पितृदोष निश्चित करने के लिए और एक परिक्षा है । जैसे ही इस व्यक्ती का जन्म हुवा है आमदनी कम हुई है , या फ़िर घरमें क्लेष बढे हो, इस व्यक्ती की तरक्की नही हो रही हो । ये तीन बाते समझकर पितृदोष है ये माना जा सकता है । जिसे पितृदोष है उसको श्राध्द कर्म अनिवार्य है ।


जब कोई अशुभ योग पितृदोष के स्वरुप में जन्मकुंडली में दिखता है तो कई सारे उपाय इस फ़ल की मात्रा कम करने के लिए किये जाते है । श्राध्द प्रयोग ऐसा ही उपाय है जो इस दोष का निवारण करने के लिए है । इससे पितृदोष कम भी होता है और अगले जन्म में बढकर फ़ल नही देता । धर्मशास्त्र में इसका जादा महत्व है । बचपन से लेकर हम जो सुख पाते है उसके लिए माता पिता या पिछले जन्म में हमारे पुर्वजो ने अपार कष्ट झेले होते है । कई बार उन्हे पुण्यकर्म करने के लिए मोका नही मिलता । उनका स्मरण करके पिंडदान करना ये श्राध्द है । उसके साथ उनका स्मरण करके उनको इस अवस्था से मुक्ती मिले इसके लिए भी कुछ कर्म किये जाते है । गरीब को भोजन देना , दान देना ये सामान्य कर्म है । श्रीमद्भागवत का पाठ  स्वयं करना या फ़िर उसके पाठ का प्रबंध करना भी पितृदोष के मुक्ती के लिए उपाय है ।


ये सारे उपाय पिता और पिता के पुर्वजोंको मुक्ती दिलाने के लिए तथा माता और उनके पुर्वजों को मुक्ती प्रदान करने के लिए है । अगर बिहार में स्थित पितृगया में पिता का श्राध्द करते है तो उसका महत्व और है । इसी तरह गुजराथ में स्थित मातृगया में किया माता का श्राध्द भी श्राध्द का फ़ल देता है । जब व्यक्ती कई साल तक माता और पिता का श्राध्द करके बुढा हो जाता है तो मातृगया और पितृगया में श्राध्द करने पर अगर आगे श्राध्द ना कर सके तो भी उसका दोष नही ऐसी भी मान्यता है ।

महाराष्ट्र में स्थित नाशिक में श्राध्द विधी करने से किसी की हत्या करने से मिलने वाले पितृदोष का निवारण होता है । इसी तरह किसी की का धन, प्रॉपर्टी छिनने से मिलने वाले शाप से मुक्ती मिलती है ऐसी मान्यता है । नाग या सर्प की हत्या भी पाप माना जाता है । उसका भी निवारण नाशिक में किया जाता है इसकी भी मान्यता है । आजकल कोई भी अच्छा फ़ल ना मिलने पर व्यक्ती दुखी होता है । जरुरी नही उसका का कारण पितृदोष हो । महाराष्ट्र में नाशिक शहर होने से महाराष्ट्र  के कई स्वयंघोषीत शास्त्री बिना समझे जातक को नारायण बली नाम का श्राध्द करवाने हेतू भेजते है । इससे लाभ नही होता है । महाराष्ट्र में ज्योतिष का अभ्यास कई सालो सें और कई पिढीयो सें किया जा रहा है । सबसे विद्वान ज्योतिषी माननीय वसंत दामोदर भट जिन्होने ज्योतिषशास्त्र में कई संशोधन किये है,  नारायण बली या नागबली का प्रयोग संतती सुख ना मिले तो आखरी उपाय में करनी सलाह देते है ।

श्राध्द करने के लिए पितृपक्ष का आयोजन है । जो व्यक्ती मृत हुवा है उसका मृत्य़ु लोक की दिशा में प्रवास एक साल तक चलता   है । एक साल के बाद वर्षश्राध्द के उपरांत मृत व्यक्ती को पितृ कहा जा सकता है । पहले एक साल हर महिने मासीक श्राध्द का आयोजन करना चाहीये ऐसे शास्त्र में कहा गया है । इसलिए पितृपक्ष में उनका श्राध्द आवश्यक नही । लेकीन जिनका वर्षश्राध्द हुवा उन सभी पितृ के लिए श्राध्द आवश्यक है । माता पिता का श्राध्द अनिवार्य है । जबतक माता पिता जिवीत है व्यक्ती किसी और  का श्राध्द नही कर सकता ।

पितृपक्ष १४ सितंबर २०१९ से लेकर २८ सितंबर २०१९ तक है । श्राध्द कैसे किया जाता है ये इसकी जानकारी अगले आर्टीकल में अलगसे दि जाएगी । लेकीन ये कहना अनिवार्य होगा की अगर कई साल श्राध्द नही किया हो तो त्रिपींडी श्राध्द नाम का विधी आवश्यक है । उसके बाद हर साल श्राध्द विधी करते रहना आवश्यक होगा ।

गया में श्राध्द करने के लिए पितृपक्ष की आवश्यकता नही है ऐसा शास्त्रो में कहा गया है ।  "गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं "

अंत में पितृदोष के लिए सिर्फ़ श्राध्द करना ये उपाय नही उसके साथ दान भी करना और शास्त्र संमत और भी उपाय जैसे श्रीम्द्भागवत का पाठ करना एक और उपाय है ।

जिसके जन्मकुंडली में अशुभ योग भी नही है वो अपने माता पिता के मृत्यु के पश्चात उनका हरसाल श्राध्द करे ये पितरोंके शुभ आशिर्वाद और संतती रक्षण के लिए आवश्यक है ।

जिसके जन्मकुंडली में अशुभयोग है उसने ये पितृदोष तो नही ये जानना आवश्यक है । अगर पितृदोष नही है तो एकबार नाडी ग्रंथो मे लिखे उपाय से उसका निवारण करने का प्रयास करे । लेकीन श्राध्द भी अनिवार्य है ।

अगर पितृदोष है ये निश्चीत तो श्राध्द के साथ कई उपाय करनेसे इस का असर कम हो जाता है । क्या आपकी जन्मकुंडली में पितृदोष है ? ये जानने के लिए निचे दिये whatsapp पर संपर्क करे ।

ज्योतिषशास्त्री नितीन जोगळेकर
चिंचवड पुणे
महाराष्ट्र
whatsapp 9763922176